राजपूत और क्षत्रिय यह ऐसे शब्द हैं जिनको सुनते ही एनी लोग गौरवान्वित होते हैं.इनकी इतिहास भी बहुत गरिमामयी रही है.आजकल इनके राजनीती और रणनीति की चर्चा लगभग हर जगह हो रही है.आइये हम आपको बताते हैं.
मौजूदा लोकसभा चुनाव में राजपूत समाज की राजनीती इतनी उलझी हुई है की यह चर्चा का विषय बना हुआ है.इस समाज की रणनीति अबतक कम से कम शाहाबाद के लोगों को समझ में नहीं आई है.
औरंगाबाद के भाजपा सांसद के नामांकन रैली में आस पास के जिला से लगभग हर छोटा बड़ा राजपूत नेता शामिल हुआ,बिना निमंत्रण के.उनके नामांकन रैली में हर दल के छोटे स्तर के राजपूत नेता देखे गये चाहे वह राजद के हो या जदयू भाजपा के या लोजपा के.यह बात कुछ दिन तक चर्चा का विषय रहा.यहाँ तक तो ठीक था.
इधर बक्सर में मुख्य मुकाबला राजद के जग्दानानंद सिंह और भाजपा के अश्विनी चौबे के बिच है.लेकिन यहाँ भी वहीँ बात सामने आई स्थानीय स्तर के हर दल ने राजपूत नेता राजद के जगदानंद सिंह के प्रति सहानुभूति प्रकट करते नजर आ रहे हैं.भाजपा के सैकड़ों प्रखंड स्तर के राजपूत कार्यकर्ता जगदानंद सिंह के लिए प्रचार प्रसार कर रहे हैं.यह बात भी सामने आ रही है.हालाकिं बक्सर ब्राह्मण बहुल क्षेत्र है लेकिन यहाँ के राजपूत मतदाता अश्विनी चौबे के साथ खड़ा दिखाई नहीं दे रहे हैं.
आरा में मुख्य मुकाबला भाजपा के आर के सिंह और महागठ बंधन के राजू यादव के बिच बताई जा रही है.यहाँ भी राजद के राजपूत नेता और कैडर वोटर भाजपा के आर के सिंह के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं.इनसब बातों को समझते देर नहीं लगी और चौक चौराहे पर लोग कहने लगे की अनोखी है शाहाबाद में राजपूतों की राजनीती.
जैसे ही बक्सर की बात सामने आई की यहाँ राजपूत वोटर जगदा बाबु के पक्ष में हैं,तो वहां के ब्राह्मणों ने अलग नारा शुरू कर दिया और कहने लगे की अगर बक्सर में बाबा गडबडाए तो आरा में आर के सिंह भी गड़बड़ा जायेंगे.मतदाताओं के बिच जातीय और जमीनी राजनीती शुरू हो गई है.मामला दल से ऊपर उठ कर जात पर आ गया है.
इधर काराकाट में राजपूत समाज की कुछ मंडली जदयू उम्मीदवार महाबली सिंह के पक्ष में प्रचार कर रहा है तो वहीँ राजपूत समाज की युवा पीढ़ी निर्दलीय प्रत्याशी कुमार सौरभ सिंह के पक्ष में लामबंद है.सासाराम लोकसभा में राजपूत समाज अब कांग्रेस नेत्री मीरा कुमार को वोट देने के लिए अपील करने लगा है,हालाकिं अबतक चुप थे लेकिन अब बोलना शुरू कर दिए हैं.
इन सभी बातों के देखा जाये तो राजपूत समाज अपने जाति की राजनीती करता है न की किसी दल या नेता की ,ऐसा क्षेत्र के लोगों का मानना है.हालाकिं इन 4-5 लोकसभा में इसका क्या नतीजा होता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
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