बिहार का सासाराम सीट भी राजनितिक परिदृश्य के हिसाब से एक अलग महत्व रखता है,क्यूंकि यहाँ सदियों से कांग्रेस के तरफ से बाबु जगजीवन राम और उनकी बेटी मीरा कुमार ने मोर्चा संभाल रखा है.यह एक ऐसा सीट है जहाँ से चुनाव लड़ने के लिए कोई भी आदमी कांग्रेस कार्यालय अबतक नहीं पहुँच सका है.यह सीट अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए तो सुरक्षित है ही साथ ही साथ कांग्रेस के तरफ से जगजीवन बाबु के परिवार के लिए भी सुरक्षित माना जाता रहा है.
अब बात करते हैं जगजीवन राम के राजनितिक वारिश मीरा कुमार की,मीरा कुमार पहली बार 1985 में उत्तर प्रदेश के बिजनोर सीट से उपचुनाव में सांसद बनकर दिल्ली पहुची.इसके बाद 1989 में उन्हें सासाराम से चुनाव लड़ाया गया लेकिन वो छेदी पासवान से चुनाव हार गईं.फिर 1991 में आम चुनाव हुए उसमें भी मीरा कुमार पुनः सासाराम सीट से लड़ी लेकिन इसबार भी वो चुक गईं और छेदी पासवान चुनाव जीत गए.
सासाराम में लगातार दो बार छेदी पासवान से हारने के बाद उन्हें 1996 में दिल्ली के करोलबाग सीट से चुनाव लड़ाया गया और सफलता हाथ लगी इसके बाद 1998 के आम चुनाव में भी वो करोलबाग से ही सांसद बनकर संसद पहुंची लेकिन 1999 में करोलबाग से अनीता आर्या ने उन्हें पराजीत कर दिया.
इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में वो सासाराम से चुनाव लड़ीं और मुनिलाल को हराकर सांसद बनी,2009 में भी यही स्थिति रही फिर से मुनिलाल को मीरा कुमार से हारना पड़ा.लेकिन 2014 के मोदी लहर में उनका मुकाबला पुनः छेदी पासवान से हो गया और वो तीसरी बार सासाराम में छेदी पासवान से चुनाव हार गईं.
अब 2019 में फिर मीरा कुमार का मुकाबला भाजपा नेता छेदी पासवान से हो रहा है,लेकिन पिछले रिकॉर्ड को देखने से स्पष्ट है की आजतक मीरा कुमार छेदी पासवान से जीत नहीं सकी हैं.ऐसे में इसबार क्या उनके राजनितिक जीवन में नया करिश्मा होगा? क्या वो इस चुनाव में छेदी पासवान को हरा सकेंगी या फिर खुद ही हार जाएँगी? इन तमाम सवालों का जवाब तो 23 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा.
इस तरीके अपने पुरे राजनितिक जीवन में मीरा कुमार चार बार लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं.जिसमें एक बार दिल्ली के करोलबाग सीट से और तीन बार सासाराम सीट से छेदी पासवान के हाथों.
अब बात करते हैं जगजीवन राम के राजनितिक वारिश मीरा कुमार की,मीरा कुमार पहली बार 1985 में उत्तर प्रदेश के बिजनोर सीट से उपचुनाव में सांसद बनकर दिल्ली पहुची.इसके बाद 1989 में उन्हें सासाराम से चुनाव लड़ाया गया लेकिन वो छेदी पासवान से चुनाव हार गईं.फिर 1991 में आम चुनाव हुए उसमें भी मीरा कुमार पुनः सासाराम सीट से लड़ी लेकिन इसबार भी वो चुक गईं और छेदी पासवान चुनाव जीत गए.
सासाराम में लगातार दो बार छेदी पासवान से हारने के बाद उन्हें 1996 में दिल्ली के करोलबाग सीट से चुनाव लड़ाया गया और सफलता हाथ लगी इसके बाद 1998 के आम चुनाव में भी वो करोलबाग से ही सांसद बनकर संसद पहुंची लेकिन 1999 में करोलबाग से अनीता आर्या ने उन्हें पराजीत कर दिया.
इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में वो सासाराम से चुनाव लड़ीं और मुनिलाल को हराकर सांसद बनी,2009 में भी यही स्थिति रही फिर से मुनिलाल को मीरा कुमार से हारना पड़ा.लेकिन 2014 के मोदी लहर में उनका मुकाबला पुनः छेदी पासवान से हो गया और वो तीसरी बार सासाराम में छेदी पासवान से चुनाव हार गईं.
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अब 2019 में फिर मीरा कुमार का मुकाबला भाजपा नेता छेदी पासवान से हो रहा है,लेकिन पिछले रिकॉर्ड को देखने से स्पष्ट है की आजतक मीरा कुमार छेदी पासवान से जीत नहीं सकी हैं.ऐसे में इसबार क्या उनके राजनितिक जीवन में नया करिश्मा होगा? क्या वो इस चुनाव में छेदी पासवान को हरा सकेंगी या फिर खुद ही हार जाएँगी? इन तमाम सवालों का जवाब तो 23 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा.
इस तरीके अपने पुरे राजनितिक जीवन में मीरा कुमार चार बार लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं.जिसमें एक बार दिल्ली के करोलबाग सीट से और तीन बार सासाराम सीट से छेदी पासवान के हाथों.
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