पुरे बिहार में भाजपा अपने बागी नेताओं से परेसान है.जगह जगह भाजपा के राह में रोड़े अटकाने के लिए उसके अपने बागी नेता ही खड़े दिखाई दे रहे हैं.ऐसे में मामला थोड़ा फ़जीहत वाला होने लगा है.आज हम आपको बताते हैं की सुरक्षित सीट सासाराम में कैसे बागी भाजपा नेता संजीव कुमार भी मजबूती से छेदी पासवान को रोकने में जुट गये हैं.
कौन हैं संजीव कुमार ?
42 वर्षीय संजीव कुमार दलित समाज से आते हैं.मूल रूप से बकनौरा,नौहट्टा प्रखंड के रहने वाले संजीव कुमार रविदास समाज से ताल्लुक रखते हैं.संजीव कुमार के माता पिता सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी हैं.इनके बचपन की पढाई सासाराम के संत पॉल स्कुल से हुई है इसके बाद ये उच्च शिक्षा के लिए बाहर चले गये.संजीव देश के प्रतिष्ठित संस्थान से मैनेजमेंट की पढाई करने के बाद विदेश में कई वर्षों तक नौकरी किये हैं.
वर्ष 2012 में संजीव भाजपा से जुड़े और सक्रीय राजनीती में प्रवेश किये.2014 के लोकसभा चुनाव में सासाराम सीट से उम्मीदवार के रेस में संजीव लगभग तय हो चुके थे,क्षेत्र भ्रमण से लेकर बैनर पोस्टर तक तमाम तैयारी हो चुकी थी तभी छेदी पासवान जदयू से भाजपा में पार्टी बदल कर आ गये और सासाराम से टिकट कन्फर्म करा लिया. तब शीर्ष नेतृत्व ने संजीव को भरोषा दिया था की उन्हें 2015 के विधानसभा चुनाव में चेनारी से उम्मीदवार बनाया जायेगा.समय अनुसार चेनारी सीट रालोसपा के खाते में गई और ललन पासवान उम्मीदवार बने.
तीन बार धोखा मिला: संजीव
वार्ता के दौरान संजीव बताते हैं की "उन्हें पार्टी द्वारा लगातार तीसरी बार धोखा दिया गया है.वो इसबार भी टिकट के लिए प्रयास किये लेकिन छेदी पासवान के धनबल और राजनितिक लॉबी के आगे वो हार गए.लेकिन इसबार उन्होंने तय किया है की चुनाव में आयेंगे और छेदी पासवान के रास्ते को रोकेंगे.संजीव अब निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला ले चुके हैं.वो लगातार क्षेत्र भ्रमण कर रहे हैं और लोगों को बता रहे है की जिसको भाजपा ने टिकट दिया है उसने पार्टी के साथ गद्दारी किया है.श्री छेदी पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में NDA के उम्मीदवार के खिलाफ अपने बेटे को खड़ा किया था जो की पार्टी विरोधी हरकत थी.वो विधानसभा चुनाव में कहीं भी प्रचार तक करने नहीं गए थे.ऐसे लोग सिर्फ अपने परिवार और बेटे के हित में सोचते हैं,इन्हें प्रधानमन्त्री जी से कोई लेना देना नहीं है इन्हें सिर्फ अपनी फ़िक्र है."
सोशल मीडिया में चर्चा है
हमारे टीम के जानकारी के अनुसार संजीव कुमार के लिए अलग अलग सोशल मीडिया प्लेटफोर्म से survey कराया जा रहा है,जिसमें लोग इन्हें खूब पसंद कर रहे हैं.इस में युवा वर्ग सबसे ज्यादा संजीव को समर्थन प्रेषित कर रहा है.ऐसे ही एक survey फेसबुक पर की गई थी जिसमें सवाल पूछा गया था की "सासाराम लोकसभा में भाजपा कार्यकर्ता किसको पसन्द कर रहे हैं? 31 मार्च को पूछे गए इस प्रश्न में कुल 343 लोगों ने जवाब दिया है जिसमें 218 लोगों ने संजीव कुमार को अपनी पसंद बताई है जबकि निवर्तमान सांसद छेदी पासवान को सिर्फ 125 लोगों ने पसंद किया है.यह आकंडा करीब 64 और 36 फीसदी का है.
हालाकि इस survey से यह तो नहीं पता चल पायेगा की किसको कितना वोट मिलेगा लेकिन एक बात स्पष्ट जरुर है की युवाओं की पहली पसंद संजीव कुमार बन चुके हैं.अलग सोशल मीडिया के प्रतिक्रिया से पता चला है की सासाराम लोकसभा क्षेत्र के युवा इन बूढ़े नेताओं के दलदल से बाहर निकलना चाहते हैं.उन्हें एक विकल्प की तलाश है,युवाओं की एक बड़ी संख्या तमाम दलों के दलदल से ऊपर उठकर एक युवा नेतृत्व को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.कहीं न कहीं संजीव भी इस बात को समझते हैं इसलिए वो भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रीय हैं और युवाओं के लगातार संपर्क में हैं.
42 वर्षीय संजीव कुमार दलित समाज से आते हैं.मूल रूप से बकनौरा,नौहट्टा प्रखंड के रहने वाले संजीव कुमार रविदास समाज से ताल्लुक रखते हैं.संजीव कुमार के माता पिता सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी हैं.इनके बचपन की पढाई सासाराम के संत पॉल स्कुल से हुई है इसके बाद ये उच्च शिक्षा के लिए बाहर चले गये.संजीव देश के प्रतिष्ठित संस्थान से मैनेजमेंट की पढाई करने के बाद विदेश में कई वर्षों तक नौकरी किये हैं.
वर्ष 2012 में संजीव भाजपा से जुड़े और सक्रीय राजनीती में प्रवेश किये.2014 के लोकसभा चुनाव में सासाराम सीट से उम्मीदवार के रेस में संजीव लगभग तय हो चुके थे,क्षेत्र भ्रमण से लेकर बैनर पोस्टर तक तमाम तैयारी हो चुकी थी तभी छेदी पासवान जदयू से भाजपा में पार्टी बदल कर आ गये और सासाराम से टिकट कन्फर्म करा लिया. तब शीर्ष नेतृत्व ने संजीव को भरोषा दिया था की उन्हें 2015 के विधानसभा चुनाव में चेनारी से उम्मीदवार बनाया जायेगा.समय अनुसार चेनारी सीट रालोसपा के खाते में गई और ललन पासवान उम्मीदवार बने.
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तीन बार धोखा मिला: संजीव
वार्ता के दौरान संजीव बताते हैं की "उन्हें पार्टी द्वारा लगातार तीसरी बार धोखा दिया गया है.वो इसबार भी टिकट के लिए प्रयास किये लेकिन छेदी पासवान के धनबल और राजनितिक लॉबी के आगे वो हार गए.लेकिन इसबार उन्होंने तय किया है की चुनाव में आयेंगे और छेदी पासवान के रास्ते को रोकेंगे.संजीव अब निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला ले चुके हैं.वो लगातार क्षेत्र भ्रमण कर रहे हैं और लोगों को बता रहे है की जिसको भाजपा ने टिकट दिया है उसने पार्टी के साथ गद्दारी किया है.श्री छेदी पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में NDA के उम्मीदवार के खिलाफ अपने बेटे को खड़ा किया था जो की पार्टी विरोधी हरकत थी.वो विधानसभा चुनाव में कहीं भी प्रचार तक करने नहीं गए थे.ऐसे लोग सिर्फ अपने परिवार और बेटे के हित में सोचते हैं,इन्हें प्रधानमन्त्री जी से कोई लेना देना नहीं है इन्हें सिर्फ अपनी फ़िक्र है."
सोशल मीडिया में चर्चा है
हमारे टीम के जानकारी के अनुसार संजीव कुमार के लिए अलग अलग सोशल मीडिया प्लेटफोर्म से survey कराया जा रहा है,जिसमें लोग इन्हें खूब पसंद कर रहे हैं.इस में युवा वर्ग सबसे ज्यादा संजीव को समर्थन प्रेषित कर रहा है.ऐसे ही एक survey फेसबुक पर की गई थी जिसमें सवाल पूछा गया था की "सासाराम लोकसभा में भाजपा कार्यकर्ता किसको पसन्द कर रहे हैं? 31 मार्च को पूछे गए इस प्रश्न में कुल 343 लोगों ने जवाब दिया है जिसमें 218 लोगों ने संजीव कुमार को अपनी पसंद बताई है जबकि निवर्तमान सांसद छेदी पासवान को सिर्फ 125 लोगों ने पसंद किया है.यह आकंडा करीब 64 और 36 फीसदी का है.
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हालाकि इस survey से यह तो नहीं पता चल पायेगा की किसको कितना वोट मिलेगा लेकिन एक बात स्पष्ट जरुर है की युवाओं की पहली पसंद संजीव कुमार बन चुके हैं.अलग सोशल मीडिया के प्रतिक्रिया से पता चला है की सासाराम लोकसभा क्षेत्र के युवा इन बूढ़े नेताओं के दलदल से बाहर निकलना चाहते हैं.उन्हें एक विकल्प की तलाश है,युवाओं की एक बड़ी संख्या तमाम दलों के दलदल से ऊपर उठकर एक युवा नेतृत्व को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.कहीं न कहीं संजीव भी इस बात को समझते हैं इसलिए वो भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रीय हैं और युवाओं के लगातार संपर्क में हैं.
साधारण परिवार के युवा के लिए अब राजनीती आसान नहीं है: संजीव कुमार
अपने साथ हुए राजनितिक षड्यंत्र को बताते हुए संजीव भावुक होकर कहते हैं की "अब राजनीती साधारण और गरीब परिवार के युवा के लिए नहीं रह गई है,हर जगह पैसे का बोलबाला हो गया है,शीर्ष के नेता भी जेब का वजन देखकर ही साथ देते हैं.मैंने इस राजनीती के चक्कर में अपना सबकुछ बर्बाद कर दिया है,अच्छी नौकरी थी,अच्छा रहन सहन सब ख़त्म हो गया है.मेरे पास अब पैसे नहीं हैं की मैं दस गाड़ियों के साथ प्रचार कर सकूं.अब जनता के सरण में आया हूँ,जनता के साथ ही मेरा गठबंधन है,क्षेत्र के लोग ही मुझे आशीर्वाद देकर बचा सकते हैं.लोकतंत्र में जनता से बड़ा कोई नहीं है."
बात बात में संजीव पंडित दिन दयाल उपाध्याय के वक्तव्यों का जिक्र करते हुए कहते हैं की "उन्होंने कहा था की अगर दल उम्मीदवार चयन करने में गड़बड़ी कर दें तो जनता को उसे चुनाव में सुधार कर देना चाहिए"
हमारे प्रतिनिधि ने जब सवाल किया की चुनाव लड़ने के लिए आपके पास पैसे नहीं हैं तो कैसे मुकाबला करेंगे दो धुरंधर धनकुबेरों का ? इसपर बड़े बेबाकी से संजीव कुमार कहते हैं की "मैं जहाँ जा रहा हूँ वहां लोगों से कह रहा हूँ की मुझे आपके नोट और वोट दोनों की जरुरत है.मैं आपके पैसों से चुनाव लडूंगा और आपकी सेवा में जीवन बिता दूंगा.लोग मुझे चंदा दे रहे हैं,आगे भी और लोग मुझे चंदा देंगे.उसी पैसों से मैं चुनाव लडूंगा.मेरे पास अब हारने के लिए कुछ भी नहीं है,मैं सिर्फ जितने आया हूँ और जनता-युवाओं का दिल जीत कर ही रहूँगा.
किसको होगा नुकसान
राजनितिक जानकारों के मुताबिक संजीव कुमार भाजपा और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का विरोध नहीं कर रहे हैं वो सिर्फ स्थानीय उम्मीदवार छेदी पासवान को हराने की बात कर रहे हैं.यह उनकी समझदारी है,ऐसा करके वो भाजपा का वो वोट आसानी से हासिल करते नजर आ रहे हैं जो छेदी पासवान को पसंद नहीं करता है.संजीव के लिए काम करने वाले युवा भी सवर्ण समाज से ताल्लुक रखते हैं जिससे उनकी पकड मजबूत हो रही है.चुकी संजीव रविदास समाज से हैं इसलिए अंदाजा यह लगाया जा रहा है की जाति के अनुसार वो कुछ ऐसे वोट में भी सेंध लगायेंगे जो मीरा कुमार को जाता है.
मतलब साफ है,संजीव एकसाथ कई रणनीति पर काम कर रहे हैं.इससे नुकसान छेदी पासवान और मीरा कुमार दोनों को है.हालाकि अभी संजीव कुमार का प्रचार जोर नहीं पकड़ पाया है लेकिन आने वाले समय में इनकी स्थित और भी मजबूत हो सकती है.
नोटा समर्थकों के संगठनों से संपर्क में हैं
सूत्र बताते हैं की संजीव नोट समर्थक सवर्ण संगठनो के संपर्क में भी हैं,वो भी संजीव के पक्ष में हैं और संजीव को मतदान करने के लिए प्रचार कर रहे हैं.उन्होंने संजीव का नाम नोटा प्रत्याशी रख दिया है.
अब अपने बागी तेवर से संजीव भाजपा को कितना नुकसान पंहुचा सकते हैं यह तो चुनाव परिणाम ही बता पायेगा लेकिन अब संजीव को हल्के उम्मीदवार के रूप में देखना शायद दलों की बेवकूफी होगी.
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